CJI Gavai का बड़ा बयान: अदालतें हर मामले में दखल नहीं दे सकतीं – जानिए Waqf Act सुनवाई में क्या कहा
Supreme Court में Waqf Act पर सुनवाई के दौरान CJI BR Gavai ने कहा कि हर केस में अदालत का दखल जरूरी नहीं होता। जानें क्या है पूरा मामला।

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट पर सुनवाई के दौरान CJI का
बड़ा बयान – "हर बात पर कोर्ट को बोलने की ज़रूरत
नहीं"
क्या हर सामाजिक या संवैधानिक विवाद में अदालत का दखल ज़रूरी है?
इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद अहम सुनवाई के दौरान जो टिप्पणी सामने आई, उसने इस पर गहरी सोच को मजबूर कर दिया है।
CJI गवई का साफ-साफ संदेश
भारत के सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों वक्फ एक्ट (Waqf Act) को लेकर सुनवाई चल रही है। सुनवाई के दौरान CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ की बेंच में शामिल जस्टिस बी. आर. गवई ने कुछ ऐसा कहा जो अब चर्चा का विषय बन गया है।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा:
"हर मुद्दे पर कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। लोकतंत्र में संतुलन ज़रूरी है और अदालत तभी कदम उठाती है जब कोई संवैधानिक असंतुलन साफ दिखता है।"
ये बात इसलिए भी अहम है क्योंकि आजकल हर संवेदनशील मुद्दे पर लोग सीधे अदालत की ओर देखते हैं — लेकिन कोर्ट का भी एक दायरा होता है।
वक्फ एक्ट पर हो रहा है विवाद – जानिए क्यों?
आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये वक्फ एक्ट है क्या?
वक्फ एक्ट, 1995 के तहत मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों (जैसे मस्जिद, कब्रिस्तान या अन्य पवित्र स्थल) की देखभाल और प्रबंधन का अधिकार वक्फ बोर्ड को दिया गया है।
अब सवाल ये उठा है कि —
क्या ये व्यवस्था केवल एक समुदाय को विशेष अधिकार देती है?
और अगर हां, तो क्या यह संविधान के "समानता" जैसे मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है?
इसी तर्क के साथ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि वक्फ बोर्ड के पास जो शक्तियां हैं, वो संविधान की भावना के खिलाफ जाती हैं।
ज्यूडिशियल संयम बनाम हर बात पर फैसला
जस्टिस गवई का बयान इस पूरी बहस को एक अलग ही दिशा देता है।
उनका कहना था कि सिर्फ इसलिए कि कोई मुद्दा संवेदनशील है, अदालत को हर बार दखल देना ज़रूरी नहीं।
यह "ज्यूडिशियल रेस्ट्रेंट" (न्यायिक संयम) की मिसाल है — जो बताता है कि अदालत कब खुद को रोकती है और कब दखल देती है
क्यों अहम है यह मामला?
- कई राज्यों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर विवाद लंबे समय से चल रहे हैं।
- याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इस एक्ट से गैर-मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की अनदेखी हो रही है।
- और अदालत अब यह तय कर रही है कि क्या वाकई यह एक्ट संवैधानिक असंतुलन पैदा करता है।
कोर्ट हर मामले का हल नहीं, दिशा दिखाने वाला मंच
CJI गवई का बयान हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कानून का काम सिर्फ फैसला सुनाना नहीं, बल्कि संतुलन बनाए रखना भी है।
हर सामाजिक बहस अदालत में खत्म नहीं हो सकती। कुछ सवालों के जवाब हमें समाज, संसद और संवाद से भी खोजने होंगे।