ईरान-इजरायल: दोस्त से दुश्मन बनने की खौफनाक कहानी और अब तबाही की जंग
ईरान और इजरायल कभी एक-दूसरे के भरोसेमंद साथी थे, लेकिन वक्त ने इस दोस्ती को खतरनाक दुश्मनी में बदल दिया। जानिए कैसे 1948 से शुरू हुआ याराना 1979 में इस्लामी क्रांति के बाद जंग में बदल गया। साथ ही पढ़िए 13 जून से शुरू हुई ताज़ा जंग की पूरी डिटेल और इससे जुड़े अमेरिका-रूस जैसे बड़े देशों का रोल।

ईरान-इजरायल: दोस्त से दुश्मन बनने की खौफनाक कहानी
और अब तबाही की जंग
ईरान-इजरायल बीते कई समय से एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बने हुए हैं. दोनों देशों के बीच बढ़ता तनाव किसी से छिपा नहीं है. जहाँ इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान को ख़त्म करने की कसम खा राखी है तो वहीँ ईरान के नेता खामेनेई ने भी दोगुनी तेज़ी से मुंहतोड़ जवाब देने का रुख पकड़ा है. ईरान-इजरायल के युद्ध में अमेरिका और रूस के हस्तक्षेप पर दुनिया भर की नज़रें टिकीं हैं क्यों कि इससे युद्ध में अहम् मोड़ आ जायेगा. लेकिन इस सबके बीच क्या आप ये जानते हैं कि इजरायल और ईरान एक दूसरे के कट्टर दुश्मन क्यों बन बैठे हैं और उससे भी ज्यादा हैरानी की बात जानते हैं हैं क्या है... वो ये है कि एक दौर था जब ये दोनों देश एक दूसरे के सच्चे समर्थक थे. लाइक बेस्ट फ्रेंड्स... लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि दोस्तों के बीच जंग छिड़ गयी....
कब शुरू हुआ हमला?
13 जून की सुबह ईरान के लिए क़यामत लेकर आयी. पूरे ईरान पर इजरायली सेना ने हवाई हमला शुरू कर दिया. अपने इस हमले में इजरायल ने ईरान के सभी सैन्य ठिकानों और परमाणु केंद्रों को निशाने पर लिया. इजरायली सेना के इस घातक हमले में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कई टॉप अधिकारी मारे गए. ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिक इस हमले की भेंट चढ़ गए. तेहरान की तरफ से जारी बयान में इस हमले की पुष्टि हुई और ईरान की तरफ से दावा किया गया कि इजरायली सेना ने तेहरान के रिहायशी इलाकों को टारगेट किया है जिसमें कई नागरिकों की मौत हो गयी है.
आपको बता दें कि इजरायल ने ये हमला तब किया जब ईरान की अमेरिका के साथ परमाणु डील को लेकर चर्चा चल रही थी. परमाणु हथियार रखने के मामले में ईरान का कहना है कि वो इसे अपनी देश की सुरक्षा के लिए चाहते हैं लेकिन वहीँ दूसरी तरफ इजरायल इसे अपने अस्तित्व के लिए 'खतरा' मानता है.
ईरान ने किया घातक पलटवार
इजरायल के हमले का जवाब ईरान ने भी भी दोगुनी ताकत से दिया. ईरान ने इजरायली सैन्य ठिकानों पर बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला बोला. ईरान की कुछ मिसाइलें तो इजरायल के फेमस 'आयरन डोम' एयर डिफेंस को भी पार कर गयीं. ईरान के हमले से इजरायल की राजधानी तेल अवीव में भारी नुकसान हुआ. तेल अवीव में बने इजरायली रक्षा बालों के मुख्यालय भी ईरान के हमले में टारगेट किये गए.
पीएम नेतन्याहू की दो टूक
बीते 13 जून से दोनों के बीच हवाई हमलों का दौर जारी है. इन हमलों में इजरायल के तेल अवीव और हाइफा को काफी निक्सन झेलना पड़ा है. वहीँ इजरायल के हमलों के तेहरान भी सिहर उठा है. लगातार जारी इस जंग में युद्धविराम के कोई संकेत नज़र नहीं आ रहे हैं. बीते दिनों ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने भी युद्ध की आधिकारिक घोषणा कर दी थी. युद्ध को लेकर इजरायल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कथित तौर पर कहा है कि, "युद्ध केवल ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की मौत के साथ समाप्त हो सकता है."
जब ईरान-इजरायल थे 'जिगरी यार'
सन 1948 में इजरायल का गठन हुआ था. नए नए बने इस देश को उस समय के कई मुस्लिम-बहुल देशों ने मान्यता देने से मना कर दिया था. उन दिनों ईरान और तुर्की शिया-बहुसंख्यक के रूप में वर्ल्ड मैप में मौजूद थे, जो कि एक तरह से अपवाद थे. अमेरिका के बीच में पड़ने के बाद मतलब कि इजरायल के अमेरिका के कनेक्ट होने पर इन इस्लामिक देशों ने इजरायल के संप्रभु राज्य को मान्यता दे दी थी...और इस तरह शुरू हुआ ईरान-इजरायल का याराना
उन दिनों ईरान की बागडोर शाह मोहम्मद रजा पहलवी के हाथों में थी. शीत युद्ध के दौरान ईरान ने अमेरिका का साथ देकर खुद को एक सच्चा मैं सहयोगी साबित कर दिया था, जिसके बाद ईरान के रिश्ते अमेरिका के साथ अच्छे हुए. उधर इजरायल क्योंकि नया नया देश बना था, इसलिए उसे भी अमेरिका की जरूरत थी. और इस तरह तीनों देशों की आपसी निर्भरता ने इस दोस्ती की नींव रखी.
उन दिनों प्रधान मंत्री डेविड बेन गुरियन इजरायल को संभाल रहे थे. परिधि सिद्धांत का पालन करते हुए उन्होंने गैर-अरब देशों के साथ सहयोग करने का एक प्रयास किया. इस प्रयास में में उन्हें ईरान, तुर्की और इथियोपिया का पूरा सपोर्ट मिला.
मैदान-ए-जंग में उतरे 'यार'
इजरायल अच्छे नेतृत्व के साथ आगे बढ़ा और कई क्षेत्रों में विकास किया. जब अरब देशों के साथ युद्ध में इजरायल का बहिष्कार हुआ तब भी ईरान ने इजरायल का साथ दिया और उसे कच्चा तेल मुहैया कराया.
धीरे-धीरे समय बदला और बदली सत्ता... 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति का आगाज़ हुआ. इस क्रांति ने ईरान-इजरायल के संबंधों को पूरी तरह बदल दिया. ईरान में शाह की जगह अयातुल्ला रुहोल्लाह खामेनेई ने ले ली और इस तरह स्थापित हुआ इस्लामी गणराज्य...
ईरान-इजरायल की दोस्ती के दिनों में भी ईरान में कुछ इस्लामिक तत्त्व थे जो फिलिस्तीन का सहयोग करते थे. 1979 के बाद ईरान-इजरायल के बीच अचानक बहुत कुछ बदल गया. ईरान की तरफ से इजरायली पासपोर्ट प्रतिबन्ध से लेकर ईरानी पासपोर्ट होल्डर्स को "कब्जे वाले फिलिस्तीन" की यात्रा पर प्रतिबंध तक, धीरे धीरे दोनों देशों में तनाव बढ़ने लगा. हद तो तब हुई जब ईरान ने इजरायल को 'इस्लाम का दुश्मन' और 'छोटा शैतान' घोषित कर दिया.
1980 और 90 के दशक में ईरान सशस्त्र समूहों के स्पॉन्सर के रूप में उभरा और इस तरह जन्मे कुछ आतंकी संगठन. लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हूती और गाजा में हमास. इन समूहों के लिए ईरान की तरफ से हर संभव मदद की जा रही थी और उन्हें इजरायल पर हमले के लिए हथियार देने के साथ ही युद्ध की ट्रेनिंग भी दी जा रही थी.
उसके बाद से ही दोनों देशों के तनाव ने विकराल रूप लेना शुरू कर दिया और नतीजा ये निकला है कि कभी एक दूसरे के पक्के दोस्त रहे ये देश आज एक दूसरे का अस्तित्व मिटाने पर तुले हुए हैं. ईरान-इजरायल के बीच चल रहे तनाव का ऐसा असर है कि दुनिया भर में क्रूड आयल की बी हारी किल्लत आने वाले समय में देखी जा सकती है. हर तरफ से ईरान-इजरायल के बीच शांति वार्ता की कोशिशें जारी हैं. लेकिन क्या वार्ता से ये मसला हल हो पायेगा... ये बड़ा सवाल है
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