उज्जैन में 15 और 16 जून को शिप्रा परिक्रमा कार्यक्रम का आयोजन : मोहन यादव

मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में 15 और 16 जून को विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इस मौके पर यात्रा निकाली जाएगी और शिप्रा नदी को चुनरी भी अर्पित की जाएगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि उज्जैन में आगामी 15 और 16 जून को नवमी और दशमी पर शिप्रा परिक्रमा के कार्यक्रम होंगे।

May 29, 2024 - 07:30
उज्जैन में 15 और 16 जून को शिप्रा परिक्रमा कार्यक्रम का आयोजन : मोहन यादव
उज्जैन में 15 और 16 जून को शिप्रा परिक्रमा कार्यक्रम का आयोजन : मोहन यादव

भोपाल : मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में 15 और 16 जून को विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इस मौके पर यात्रा निकाली जाएगी और शिप्रा नदी को चुनरी भी अर्पित की जाएगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि उज्जैन में आगामी 15 और 16 जून को नवमी और दशमी पर शिप्रा परिक्रमा के कार्यक्रम होंगे। रामघाट से यात्रा प्रारंभ होगी जो दत्त खाड़ा, त्रिवेणी, गढ़ कालिका और गोमती कुंड जैसे पवित्र स्थलों से निकलेगी।

आम जन द्वारा शिप्रा नदी को चुनरी अर्पित की जाएगी। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में आम जन शामिल होते हैं। इस नाते यह सुनिश्चित किया जाए कि यह कार्यक्रम पारंपरिक उल्लास के साथ संपन्न हो। मुख्यमंत्री ने मंगलवार को मंत्रालय में हुई बैठक में शिप्रा परिक्रमा गंगा दशमी कार्यक्रम की जानकारी हासिल की। मुख्यमंत्री ने 16 जून की शाम रामघाट, दत्त अखाड़ा क्षेत्र में होने वाले सांस्कृतिक आयोजन के स्वरूप की जानकारी ली।

यह कार्यक्रम महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ की तरफ से होगा। इस अवसर पर शिप्रा नदी के महत्व और उसके सांस्कृतिक वैभव की जानकारी देने वाली विशेष पुस्तिका का लोकार्पण भी होगा। सदानीरा केंद्रित ऑडियो वीडियो सीडी का लोकार्पण भी किया जाएगा। शिप्रा परिक्रमा गंगा दशमी कार्यक्रम के गरिमामय आयोजन के साथ ही प्रदेश की अन्य प्रमुख नदियों जैसे नर्मदा, चंबल, ताप्ती, सोन, सिंध और बेनगंगा आदि के तट पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनी और जलक्रीड़ा गतिविधियां होगी। इसके साथ ही नदियों के किनारे स्थित देव स्थलों की सफाई और मंदिर परिसर की स्वच्छता के कार्य किए जायेंगे।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि बीते बीस वर्ष से शिप्रा परिक्रमा गंगा दशमी का आयोजन हो रहा है, जिसमें समाज का प्रबुद्ध वर्ग, आम नागरिक और इतिहास पुरातत्व के विद्वान भी शामिल होते हैं। यह सामाजिक समरसता का प्रतीक पर्व भी है। भजनों की प्रस्तुति और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम इसकी विशेषता हैं। इस समृद्ध परंपरा को पूरे प्रदेश में विस्तारित करते हुए नागरिकों की भागीदारी से अन्य नदियों के घाटों पर भी आयोजन करने की कल्पना को साकार किया जाए। 



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