यमुना नहीं, अब ‘कैंसर नदी’ कहे जाने वाली हिंडन नदी की सफाई पर भी हो सवाल: क्यों है ये नदी इतनी प्रदूषित और क्या है इसका समाधान?

परिचय
जब-जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) विपक्ष में होती है, तब यमुना नदी की सफाई को लेकर सरकार पर सवाल उठाती है। यह सवाल स्वाभाविक भी है, क्योंकि यमुना देश की प्रमुख नदियों में से एक है और दिल्ली जैसी राजधानी से होकर बहती है। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या केवल यमुना की ही सफाई ज़रूरी है? क्या सरकारें हिंडन नदी जैसी छोटी, लेकिन समान रूप से महत्वपूर्ण नदियों की ओर ध्यान नहीं दे रही हैं? हिंडन नदी को आज ‘कैंसर नदी’ कहा जाने लगा है, क्योंकि इसके किनारे बसे गांवों में कैंसर, चर्म रोग, और अन्य गंभीर बीमारियाँ आम हो गई हैं। इस स्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है और इसे सुधारने के लिए क्या किया जा सकता है—यही इस लेख का मूल विषय है।
हिंडन नदी की स्थिति और इसका पर्यावरणीय संकट
हिंडन नदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले से निकलती है और मेरठ, गाज़ियाबाद, बागपत, हापुड़ और नोएडा होते हुए यमुना नदी में जाकर मिलती है। कभी यह नदी स्वच्छ और जीवनदायिनी हुआ करती थी। मगर आज यह पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। इसमें घरेलू कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट, केमिकल्स और सीवेज का लगातार बहाव हो रहा है। आलम यह है कि इसके किनारे बसे गांवों में पीने का पानी ज़हर बन चुका है। अनेक रिपोर्ट्स में यह सामने आ चुका है कि हिंडन नदी के किनारे कैंसर, किडनी फेलियर, त्वचा रोग और श्वास संबंधित बीमारियों के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
प्रदूषण के मुख्य कारण
हिंडन नदी की दुर्दशा के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहला कारण है—औद्योगिक कचरे का अनियंत्रित बहाव। मेरठ, गाज़ियाबाद और नोएडा जैसे औद्योगिक शहरों से कई फैक्ट्रियाँ बिना ट्रीटमेंट के केमिकल और विषैले जल को सीधे नदी में बहा रही हैं। दूसरा बड़ा कारण है—गांव और शहरों से निकलने वाला सीवेज और ठोस कचरा। अनेक नालों को हिंडन नदी से जोड़ दिया गया है जो बिना किसी सफाई के सीधा गंदा पानी नदी में डालते हैं। इसके अलावा, खेती में अत्यधिक मात्रा में उपयोग किए जा रहे कीटनाशक और रासायनिक खाद भी वर्षा के साथ बहकर नदी में मिल जाते हैं। इन सभी कारणों से नदी का जल इतना विषैला हो चुका है कि यह ‘जहर की धारा’ बन गई है।
स्थानीय जनजीवन पर प्रभाव
हिंडन नदी के किनारे बसे गांवों के लोग इस प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। पानी पीने योग्य नहीं है, लेकिन उनके पास विकल्प भी नहीं है। सरकारी नलकूप और जल योजनाएँ या तो उपलब्ध नहीं हैं या निष्क्रिय हो चुकी हैं। नतीजन लोग इसी ज़हरीले पानी को पीने को मजबूर हैं, जिससे उनमें कैंसर जैसी गंभीर बीमारियाँ फैल रही हैं। बच्चों में जन्मजात बीमारियाँ, महिलाओं में गर्भाशय संबंधित रोग और बुज़ुर्गों में लीवर और किडनी के रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। यह एक मानवीय संकट बन चुका है।
सरकारी उदासीनता और राजनैतिक चुप्पी
जब यमुना की सफाई पर राजनीतिक दल सवाल उठाते हैं, तब हिंडन नदी की स्थिति पर उनकी चुप्पी आश्चर्यजनक है। केंद्र और राज्य सरकारों ने हिंडन के लिए कोई ठोस कार्ययोजना अभी तक नहीं बनाई है। कई बार घोषणाएँ ज़रूर की गईं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा “नमामि गंगे” योजना की तर्ज पर हिंडन सफाई परियोजना शुरू करने की बातें तो हुईं, लेकिन ये बातें फाइलों और घोषणाओं से आगे नहीं बढ़ सकीं।
क्या हो सकते हैं समाधान?
हिंडन नदी को साफ करने के लिए सबसे पहले इसके प्रदूषण स्रोतों को बंद करना होगा। उद्योगों के लिए सख्त नियम बनाकर उन्हें ETP (Effluent Treatment Plants) लगाना अनिवार्य करना होगा। घरेलू सीवेज के लिए STP (Sewage Treatment Plants) का निर्माण ज़रूरी है। गांवों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करके उन्हें हिंडन नदी से निर्भरता हटाई जा सकती है। इसके साथ ही जनजागृति अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। स्कूल, कॉलेज, पंचायतों में जागरूकता अभियान चलाना भी अहम कदम होगा। इसके साथ-साथ एक स्वतंत्र जल निगरानी संस्था भी बनाई जानी चाहिए जो नियमित रूप से नदी के जल की गुणवत्ता की जांच करे और रिपोर्ट जारी करे।
निष्कर्ष
हिंडन नदी की स्थिति एक पर्यावरणीय और मानवीय संकट का संकेत देती है। यदि समय रहते सरकार और समाज मिलकर ठोस कदम नहीं उठाते, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और भी भयावह रूप ले सकता है। राजनीतिक पार्टियों को केवल यमुना की सफाई पर नहीं, बल्कि हिंडन जैसी ‘अनदेखी’ नदियों की सफाई पर भी समान रूप से ध्यान देना चाहिए। अब वक्त आ गया है कि हिंडन नदी के बहाव को फिर से जीवनदायिनी बनाया जाए, ताकि इसके किनारे बसने वाले लोगों को फिर से स्वच्छ पानी और स्वस्थ जीवन मिल सके।