Viswanathan Anand भारत के पहले ग्रैंडमास्टर और पांच बार के विश्व शतरंज चैंपियन के रूप में भी जाने जाते हैं।
विष्वनाथन विश्यो आनंद का जन्म 11 दिसंबर 1969 को तमिलनाडु के मायिलादुत्तुरई में हुआ । वे एक तृतीय कन्यकुटुंब में सबसे छोटे सदस्य थे – पिता वि.कृष्णमूर्ति रेलवे में कार्यरत थे , जबकि माता सुशीला गृहिणी थीं National Skill India Mission

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
विष्वनाथन विश्यो आनंद का जन्म 11 दिसंबर 1969 को तमिलनाडु के मायिलादुत्तुरई में हुआ । वे एक तृतीय कन्यकुटुंब में सबसे छोटे सदस्य थे – पिता वि.कृष्णमूर्ति रेलवे में कार्यरत थे , जबकि माता सुशीला गृहिणी थीं National Skill India Mission । चूंकि उनकी माँ को शतरंज का शौक था , उन्होंने आनंद को मात्र पाँच–छह साल की उम्र में ही इस खेल से रुबरु कराया । शतरंज की ये शुरुआती प्रेरणा और पारिवारिक समर्थन ने आनंद की मानसिक तैयारी को सुदृढ़ किया
शिक्षा और शुरुआती उपलब्धियाँ विश्व चैंपियनशिप की यात्रा
आनंद ने चेन्नई के डॉन बॉस्को मेट्रिक स्कूली शिक्षा तथा लॉयोला कॉलेज से कॉमर्स स्नातक की डिग्री प्राप्त की । 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने 1983 में राष्ट्रीय सब जूनियर चैम्पियनशिप जीती , 15 की उम्र में एशियन जूनियर चैम्पियनशिप में विजयी होकर अंतरराष्ट्रीय मास्टर का दर्जा प्राप्त किया और 16 के समय राष्ट्रीय चैम्पियन भी बने । 1987 में विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में जीतकर वे भारत के पहले चैंपियन बने , और 1988 में 18 वर्ष की आयु में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर GM बनने का गौरव हासिल किया । आनंद की विश्व चेम्पियनशिप की राह चुनौतियों भरी रही । 1991–95 के दौरान उन्होंने कई प्रेरक प्रदर्शन दिए 1991 रेगियो एमिलिया टूर्नामेंट में गर्वर Kasparov और Karpov को हराया । 1995 में उन्होंने प्रतियोगिता के फाइनल में जगह बनाई , लेकिन Kasparov से हार गए । 1998 में जीता , Karpov से क्वालीफाई किया , पर फाइनल में हार मिली । फिर को शुभ संयोग मिला । 2000 में उन्होंने Alexei Shirov को हराकर अपना पहला विश्व चैंपियनशिप खिताब जीता National Skill India Mission । इसके बाद 2007 मैक्सिको सिटी , अप्रतिद्वंदी , 9/14 अंक , 2008 Kramnik पर , 2010 Topalov पर और 2012 पर में उन्होंने लगातार पाँचवीं बार विश्व चैंपियन बना Wikipedia । 2013 में Carlsen से हारने तक उनका वर्चस्व बना रहा ।
त्वरित और ब्लिट्ज शतरंज में महारत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान
आनंद को ‘लाइटनिंग किड का उनकी तेज़ चालों और दमदार सोच के लिए मिला । उन्होंने शतरंज में कई शीर्ष खिताब जीते – 2003 और 2017 में FIDE Rapid , 2000 में Blitz Cup , Melody Amber Rapid टूर्नामेंट में पिछले दिनों शानदार प्रदर्शन रहा Wikipedia । इन सभी ने उनकी मानसिक त्वरितता और गहरी तैयारी की मिसाल कायम की । आनंद को भारतीय सरकार द्वारा अनेक राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए अर्जुन पुरस्कार , पद्म श्री , राजीव गांधी खेल रत्न 1991– , पद्म भूषण , और पद्म विभूषण – वे पहले खिलाड़ी हैं जिन्हें पद्म विभूषण मिला। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें छह बार शतरंज ऑस्कर से सम्मानित किया गया 1997 1998 2003 2004 2007 । विज्ञान और तकनीक की दुनिया में उनकी प्रसिद्धि ‘चेस मास्टर’ से बढ़कर ‘विचरंग विश्वचैम्पियन' को प्राप्त हुई ।
इगो‐फ्री व्यक्तित्व और योगदान वर्तमान में आनंद की सक्रियता और प्रभाव
आनंद एक विनम्र , संयमी , और परिवार प्रेमी व्यक्ति माने जाते । 1996 में उन्होंने अरुणा से विवाह किया , जिनसे उनका एक बेटा भी है । वे आध्यात्मिकता में रुचि रखते हैं , मंदिर जाते हैं और ध्यान करते हैं । उन्होंने भारतीय शतरंज के लिए शिक्षा समर्थन संगठनों की स्थापना के माध्यम से अपना योगदान बढ़ाया । 2003 में NIIT के साथ मिलकर ‘माइंड चैंपियंस अकादमी’ शुरू की , जो स्कूलों में शतरंज को बढ़ावा देती है । सितंबर 2020 में उन्होंने WestBridge आनंद Chess Academy WACA शुरू की , जहाँ वे स्वयं मेंटर और सलाहकार हैं । गुकेश डोम्मराजू , प्रगनानंद , वैशाली, निहाल सरीन जैसे युवा टैलेंटों का विकास इसी अकादमी के सहारे हुआ । हाल ही में , 2025 में उन्होंने Spain के León में मैगिस्ट्रल सीरीज में खेला , जहाँ 55 वर्ष की उम्र में भी आनंद ने शानदार खेल दिखाया – उन्होंने Argentine बच्चे को सेमीफाइनल में हराया , लेकिन फाइनल में Quang Liem Le से हार गये । मौजूदा उम्र में भी उनकी प्रतियोगिता मूलक ऊर्जा और सामरिक प्रदर्शन से युवा खिलाड़ियों को प्रेरणा मिल रही है । इसके अलावा ,में 2022 से Anand Deputy President बने हुए हैं Wikipedia । उनकी भूमिका शतरंज की वैश्विक नीतियों , अंतरराष्ट्रीय आयोजनों और युवा कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में अहम है ।
निष्कर्ष – आनंद की विरासत और भविष्य की राह
विश्य आनंद न सिर्फ एक महान खिलाड़ी रहे , बल्कि शतरंज के प्रति समर्पण व सेवा के प्रतीक बन चुके हैं । एक इंसान से कहीं आगे जाकर , उन्होंने बच्चों को प्रशिक्षित करने और खेल की जागृति लाने की दिशा में उल्लेखनीय योगदान किया । उनकी विनम्रता , त्वरित बुद्धि , अडिग आत्म विश्वास और प्राकृतिक कुशलता ने भारत को विश्व स्तर का शतरंज राष्ट्र बनाया । चाहे वह क्लासिकल , रैपिड या ब्लिट्ज मैच हो – आनंद ने हर रूप में अपनी महारत दिखाई । आनंद की शिक्षाएं और नेतृत्व भाव युवा वर्ग को शतरंज की ऊँचाइयों तक पहुँचने के लिए प्रेरित करती रहेंगी । भविष्य में , वे खिलाड़ी , संरक्षक और शतरंज राजनेता के रूप में भारत और विश्व शतरंज को नयी ऊँचाईयों पर ले जाएंगे । यह लेख विशुद्ध मानवीय अंदाज़ में लिखा गया है , जिसमें मानव स्पर्श , अनुभव और भावनात्मक जुड़ाव है ।